OIC ने फ़िर की वकालत – भारत के ख़िलाफ़ जम्मू कश्मीर के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों की !

इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के महासचिवालय ने सोमवार को जारी एक बयान में एक बार फिर जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाया और लोगों के “आत्मनिर्णय के अधिकार” की वकालत की। OIC महासचिवालय ने अपने बयान में जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ “पूरी एकजुटता” दोहरायी और कहा कि वे अपने वैध आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए प्रयासरत हैं।

जेद्दा (सऊदी अरब), 29 अक्टूबर 2025 ! इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के महासचिवालय ने सोमवार को जारी एक बयान में एक बार फिर जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाया और लोगों के “आत्मनिर्णय के अधिकार” की वकालत की। OIC महासचिवालय ने अपने बयान में जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ “पूरी एकजुटता” दोहरायी और कहा कि वे अपने वैध आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए प्रयासरत हैं।

OIC के बयान में कहा गया, “महासचिवालय, इस्लामिक समिट और विदेश मंत्रियों की परिषद के संबद्ध प्रस्तावों के अनुरूप, जम्मू-कश्मीर के लोगों को उनके बुनियादी मानवाधिकारों के लिए न्यायपूर्ण संघर्ष में अपने अटल और पूर्ण समर्थन की पुनः पुष्टि करता है, जिसमें उनका अविच्छिन्न आत्मनिर्णय का अधिकार भी शामिल है। यह भारत से भी आग्रह करता है कि वह जम्मू-कश्मीर के लोगों के बुनियादी मानवाधिकारों का सम्मान करे ।“ बयान में आगे कहा गया, “महासचिवालय यह भी जोर देता है कि जम्मू-कश्मीर विवाद का अंतिम समाधान संबंधित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अनुसार किया जाना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इन प्रस्तावों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने की अपील दोहराता है।”

हालाँकि, पाकिस्तान द्वारा काबुल में किए गये हमले, पाकिस्तान द्वारा अफ़गान क्रिकेट खिलाड़ियों की हत्या, और पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा बलूच लोगों के अवैध गायब किए जाने जैसे कई मुद्दों पर OIC चुप्पी साधे रहता है। OIC ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में शहबाज शरीफ सरकार के खिलाफ हाल में हुए विरोध प्रदर्शनों पर भी कोई ध्यान नहीं दिया।

इससे पहले, यूरोपीय लेखक और पश्चिम एशिया मामलों के विशेषज्ञ माइकल अरीज़ांती ने इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) और अरब देशों की कड़ी आलोचना की थी कि वे पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (PoJK) में हो रही हत्याओं पर आँखें मूंदे हुए हैं। अरीज़ांती ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में नागरिक मौतों पर चुप्पी की तुलना गाज़ा में मौतों पर वैश्विक प्रतिक्रिया से करते हुए सवाल उठाया कि “गाज़ा में एक फ़िलिस्तीनी की मौत वैश्विक सुर्खी बन जाती है, लेकिन मुज़फ़्फ़राबाद में एक कश्मीरी मुसलमान की मौत हाशिए की खबर बनकर रह जाती है।”

उन्होंने लिखा, “भारत के खिलाफ बयान जारी करने में तेज़ रहने वाला OIC, जब भी जम्मू-कश्मीर में कोई घटना होती है, PoK में हुए नरसंहार पर एक शब्द भी नहीं बोला है। एक भी नहीं। हर शुक्रवार गाज़ा पर गरजने वाले इमाम, विद्वान और मंत्री कहाँ हैं? यह पाखंड जितना स्पष्ट है, उतना ही शर्मनाक भी। “पाकिस्तानी बलों द्वारा सस्ती बिजली और आटे की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से कम से कम 10 लोगों की मौत हो गयी और 100 से अधिक घायल हो गये। यह घटनाएँ मुज़फ़्फ़राबाद, धीर्कोट, रावलकोट और मीरपुर में हुईं ”, अरीज़ांती ने बताया।
वे लिखते हैं, “PoK में मुस्लिम नागरिकों के नरसंहार ने मुश्किल से ही किसी को प्रतिक्रिया देने पर मजबूर किया है। यह चयनात्मक आक्रोश कानों को बहरा कर देने वाला है।” अरीज़ांती ने आरोप लगाया कि पश्चिमी और मुस्लिम राष्ट्र दोनों ही दोगली नीति अपनाते हैं ।