डॉक्टर का क्लेम चुकाने से इनकार करना बीमा कंपनी को पड़ा महंगा

रेटिना की बीमारी में दिया इंट्राविट्रल इंजेक्शन देने की प्रक्रिया एक प्रकार की सर्जरी : कोर्ट – क्लेम की राशि ब्याज समेत चुकाने की बीमा का कंपनी को दिया आदेश

सूरत. आम तौर पर आम व्यक्तियों का मेडिक्लेम मंजूर करने में बीमा कंपनियां बहानेबाजी बनाती रहती है, लेकिन एक डॉक्टर ने करवाया रेटिना की बीमारी के उपचार का क्लेम भी बीमा कंपनी की ओर से नामंजूर किए जाने से मामला उपभोक्ता कोर्ट में पहुंचा था। कोर्ट ने सुनवाई के बाद बीमा कंपनी के खिलाफ की शिकायत अर्जी मंजूर कर ली और क्लेम की राशि 1.36 लाख रुपए ब्याज समेत चुकाने की बीमा कंपनी को आदेश दिया है।

अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता श्रेयस देसाई ने बताया कि उनके मुवक्किल एक ड़ॉक्टर हैं। करीब 20 सालों से वे लगातार प्रीमियम का भुगतान कर मेडिक्लेम पॉलिसी खरीद रहे थे। इस दौरान वर्ष 2020 में उन्हें आंखों से कम दिखाई देने लगा। नेत्र चिकित्सक से जांच कराने पर उनके रेटिना में समस्या होने का पता चला और उसके लिए इंट्राविट्रल इंजेक्शन सर्जरी सलाह दी गई थी। डॉक्टर ने तीन बारी में यह इंजेक्शन लगावाए। इसके लिए वे सुबह अस्पताल में भर्ती होते और शाम को उन्हें छुट्टी मिल जाती। उपचार पूरा होने के बाद उन्होंने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के समक्ष 1.36 लाख रुपए का क्लेम पेश किया था। बीमा कंपनी ने इंट्राविट्रल इंजेक्शन देने के मामले में क्लेम चुकाने योग्य नहीं होता है यह बताते हुए क्लेम चुकाने से इनकार कर दिया था। मामला उपभोक्ता कोर्ट में पहुंचने पर अभियोजन पक्ष की ओर से अधिवक्ता श्रेयस देसाई, प्राची देसाई और ईशान देसाई ने दलीलें पेश की। उन्होंने कोर्ट से कहा कि आधुनिक टेक्नोलॉजी के युग में इंट्राविट्रल इंजेक्शन सर्जरी के लिए अब मरीज को अस्पताल में अधिक समय भर्ती रहने की जरूरत नहीं होती है और इस तरह के मामलों में अन्य बीमा कंपनियों की ओर से क्लेम चुकाए गए हैं। अभियोजन पक्ष की दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने बीमा कंपनी की ग्राहक सेवा में खामी मानी और शिकायत अर्जी मंजूर करते हुए क्लेम की राशि 1.36 लाख रुपए सालाना आठ फीसदी ब्याज के साथ चुकाने का बीमा कंपनी को आदेश दिया।