विश्वगुरु – जहाँ जंग शस्त्रों से नहीं, शास्त्रों से लड़ी जाती है!

1 अगस्त को रिलीज़ हो रही फिल्म “विश्वगुरु” का प्रीमियर हाल ही में सूरत में बड़े उत्साह के साथ आयोजित किया गया। इस खास मौके पर फिल्म के कलाकारों और निर्माताओं की उपस्थिति रही और दर्शकों से इसे शुरू से ही शानदार प्रतिक्रिया मिली।
“विश्वगुरु” कोई साधारण देशभक्ति फिल्म नहीं है – यह विचारों की ताक़त, संस्कृति की गहराई और ज्ञान की विरासत पर आधारित एक सार्थक कहानी है। फिल्म की कहानी आज के समय में भी पूरी तरह प्रासंगिक लगती है – जब एक विदेशी शक्ति भारत को अंदर से कमजोर करने के प्रयास करती है, तब एक संस्था अपने सांस्कृतिक मूल्यों और शास्त्र आधारित दृष्टिकोण से उसका सामना करती है।
मुकेश खन्ना इस फिल्म के मुख्य किरदार ‘कश्यप’ के रूप में बेहद प्रभावशाली अभिनय करते हैं। खास बात यह है कि यह उनका गुजराती सिनेमा में डेब्यू है, हालांकि फिल्म में उन्होंने संवाद हिंदी में बोले हैं, जिससे उनका किरदार और भी जीवंत महसूस होता है। साथ ही गौरव पासवाला, कृष्ण भारद्वाज, श्रद्धा डांगर और सोनू चंद्रपाल जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों को पूरी गंभीरता और समर्पण के साथ निभाया है।


फिल्म का निर्देशन शैलेष बोगानी और अतुल सोना ने किया है, और इसका निर्माण सुकृत प्रोडक्शंस द्वारा किया गया है। फिल्म का हर फ्रेम एक सोच के साथ गढ़ा गया है – कभी शास्त्रों की गहराई झलकती है, तो कभी आधुनिक संदर्भ में उसके प्रभाव को महसूस किया जा सकता है।
मेहुल सुरती का संगीत फिल्म की आत्मा को और अधिक सजीव बनाता है। भावनात्मक दृश्यों में उनका संगीत दिल को छू जाता है और दृश्य की गहराई को और भी बढ़ा देता है।
“शस्त्र नहीं, शास्त्र ज़्यादा प्रभावशाली होते हैं” – यह संदेश फिल्म में कई बार बड़ी खूबसूरती से उभरकर सामने आता है।
कुल मिलाकर, “विश्वगुरु” एक ऐसी फिल्म है जो केवल गुजराती सिनेमा की नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष की सोच को एक नई दिशा देने वाली फिल्म कही जा सकती है। फिल्म के कई संवाद दर्शकों के मन में लंबे समय तक गूंजते रहेंगे। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक वैचारिक यात्रा है।

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