सूरत/गुजरात, नवंबर २०२५ – मुंबई स्थित ग्लेनेईगल्स अस्पताल भारत में लीवर ट्रांसप्लांटेशन के लिए प्रमुख केंद्र माना जाता हैं। इस अस्पताल के डॉक्टरोंने गुजरात जाकर वहां के १६५ मरीजों की सफलतापूर्वक लीवर ट्रांन्सप्लांट सर्जरी करके उन्हें नई जिंदगी दी हैं। साथ ही अस्पताल ने अब तक १,००० से ज्यादा लीवर ट्रॉन्सप्लांट करके नया रिकॉर्ड बनाया हैं । इस लीवर प्रत्यारोपण सर्जरी का नेतृत्व हेपेटोलॉजी डायरेक्टर डॉ. अमित मंडोत, लीवर ट्रांसप्लांट एवं एचपीबी सर्जरी डायरेक्टर डॉ. अनुराग श्रीमाल और पीडीयाट्रिक लीवर ट्रांसप्लांट डायरेक्टर डॉ. विभोर बोकर करते हैं।
कई बार गुजरात में रहनेवाले मरीज सर्जरी के लिए मुंबई नही आ पाते हैं। ऐसी स्थिती में मरीजों का इलाज समय रहते होना जरूरी हैं इसे ध्यान में रखते हुए अस्पताल के डॉक्टरों की टीम गुजरात में जाकर मरीजों की सर्जरी करती हैं। यहाँ वे मरीजों की प्राथमिक जांच, फॉलो-अप और ट्रांसप्लांट प्रक्रिया की जानकारी देते हैं ताकि मरीज और उनके परिवारोंवालों की मुंबई आने की जरूरत न पडे।
भारत में लीवर की बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य अनुमानों के अनुसार, लीवर सिरोसिस के वैश्विक बोझ का लगभग १८% भारत से आता है। देश में हर साल करीब २ लाख लोगों की मौत लीवर से जुड़ी समस्याओं से होती है। लीवर बीमारी अब भारत में मौत का १०वां बड़ा कारण बन गई है।
ग्लेनेईगल्स अस्पताल के हेपेटोलॉजी डायरेक्टर डॉ. अमित मंडोत ने कहॉं, “आजकल लीवर की बीमारी सिर्फ किसी खास समूह तक सीमित नहीं है। अब यह कम उम्र के लोगों में भी देखी जा रही है। इसलिए जागरूकता और समय पर जांच बहुत ज़रूरी है।”
भारत में लीवर बीमारी बढ़ने के मुख्य कारण
· फैटी लीवर – हर ३ में से १ भारतीय फैटी लीवर से पिडीत हैं को होता है। मोटापा, डायबिटीज़ और कम शारीरिक गतिविधि यह इसके कारण हैं।
· हेपेटाइटिस B और C – लंबे समय तक बिना इलाज के यह लीवर को काफी नुकसान पहुँचाता है।
· अल्कोहल से लीवर नुकसान – ज़्यादा या लंबे समय तक शराब पीने से सिरोसिस होता है।
· जन्मजात और मेटाबॉलिक रोग – जैसे विल्सन डिज़ीज़, ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस।
· गलत दवाइयों/हर्बल दवाओं का सेवन – बिना डॉक्टर की सलाह के दवा लेने से भी लीवर खराब हो सकता है।
लीवर बीमारी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि शुरुआत में कोई लक्षण नहीं दिखते। जब तक बीमारी बढ़ जाती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। पीलिया, बहुत थकान, पेट फूलना, वजन कम होना या खून की उल्टी जैसे लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
ग्लेनेईगल्स अस्पताल के लीवर ट्रांसप्लांट एवं एचपीबी सर्जरी डायरेक्टर डॉ. अनुराग श्रीमाल ने कहॉं, “अगर बीमारी जल्दी पकड़ में आ जाए तो ७०% समस्याओं को रोका जा सकता है। लेकिन जब लीवर पूरी तरह खराब हो जाता है, तब ट्रांसप्लांट ही सबसे अच्छा इलाज होता है।”
ग्लेनेईगल्स अस्पताल के पेडियाट्रिक लीवर ट्रांसप्लांट डायरेकटर डॉ. विभोर बोर्कर ने कहा, “बच्चों में लीवर बीमारी और भी चुनौतीपूर्ण होती है। सही समय पर इलाज मिलने से उन्हें स्वस्थ और बेहतर भविष्य दिया जा सकता है।”
ग्लेनेईगल्स अस्पताल के के सीईओ डॉ. बिपिन चेवले ने कहां, “गुजरात में लीवर ट्रांसप्लांट बढ़ने का कारण है लोगों में बढ़ती जागरूकता, बेहतर जांच सुविधाएँ, बदलती लाइफस्टाइल और फैटी लीवर जैसी समस्याएँ। अस्पताल अपने अच्छे रिज़ल्ट और अनुभवी डॉक्टरों की वजह से लोगों का भरोसेमंद केंद्र बन गया है।”
गुजरात से मुंबई की नजदीकी और अस्पताल की अच्छी मरीज सहायता सेवाओं की वजह से यहाँ के लोग बड़ी संख्या में ट्रांसप्लांट के लिए आते हैं।
ग्लेनेईगल्स अस्पताल मुंबई में सभी प्रकार के लीवर ट्रांसप्लांट होते हैं
• लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट – परिवार में कोई स्वस्थ व्यक्ति अपना थोड़ा-सा लीवर देता है।
• डीसीज़्ड डोनर लिवर ट्रांसप्लांट – ऐसे व्यक्ति का लीवर लगाया जाता है, जिसकी मौत हो चुकी है और जिसने दान के लिए अनुमति दी है।
• बच्चों का लीवर ट्रांसप्लांट – लीवर की बीमारी वाले बच्चों के लिए खास ट्रांसप्लांट किया जाता है।
• जटिल और मुश्किल ट्रांसप्लांट – बहुत गंभीर हालत वाले मरीजों के लिए किया उपचार।
लीवर ट्रांसप्लांट के लिए रजिस्टर कैसे करें
अगर किसी मरीज को लीवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है, तो वह ग्लेनेईगल्स अस्पताल के लीवर ट्रांसप्लांट सेंटर में आसानी से रजिस्टर कर सकता है। प्रक्रिया कैसे होती हैं।
1. पहली जांच और बेसिक टेस्ट
2. ट्रांसप्लांट डॉक्टर और सर्जन से चेक-अप
3. डोनर की जांच (अगर परिवार का कोई हिस्सा लीवर दे रहा है)
4. वेटिंग लिस्ट में नाम दर्ज करना (अगर मृत दाता का लीवर चाहिए)
5. पूरी प्रक्रिया, खर्च और ऑपरेशन के बाद की देखभाल की जानकारी देना
अस्पताल की टीम इंश्योरेंस, पैसों से जुड़ी सलाह और ट्रांसप्लांट के बाद ठीक होने में भी मदद करती है।