प्रदूषण के जाल में बच्चों की जान साँसत में !

पॉलिसीबाज़ार की एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित बच्चे होते हैं, क्योंकि प्रदूषण से जुड़ी सभी स्वास्थ्य बीमा दावों में से 43 प्रतिशत 0-10 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों से संबंधित थे।

नयी दिल्ली, 12 नवम्बर 2025 ! पॉलिसीबाज़ार की एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित बच्चे होते हैं, क्योंकि प्रदूषण से जुड़ी सभी स्वास्थ्य बीमा दावों में से 43 प्रतिशत 0-10 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों से संबंधित थे।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि बच्चे किसी भी अन्य आयु वर्ग की तुलना में पाँच गुना अधिक प्रभावित होते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वायु प्रदूषण का प्रभाव उनके जीवन पर अत्यधिक और असंतुलित रूप से पड़ता है। रिपोर्ट में कहा गया है, “सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि बच्चों पर प्रदूषण का असमान रूप से गंभीर प्रभाव पड़ता है। सभी प्रदूषण-संबंधी बीमा दावों में से 43 प्रतिशत दस वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए दर्ज किए गये, जो किसी भी अन्य आयु वर्ग की तुलना में पाँच गुना अधिक है।”

रिपोर्ट के अनुसार, 31 से 40 वर्ष की आयु वाले वयस्क ऐसे मामलों में 14 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं, जबकि 60 वर्ष से अधिक उम्र वालों की हिस्सेदारी केवल 7 प्रतिशत है। यह दर्शाता है कि अपेक्षाकृत अधिक युवा (यानि किशोर वय व बालक इत्यादि), तथा बाहरी गतिविधियों में अधिक सक्रिय लोग प्रदूषण के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं।

अस्पताल में भर्ती होने वालों के बीमा दावों का 8 प्रतिशत हिस्सा अब प्रदूषण से जुड़ी बीमारियाँ बन गयी हैं, जिनमें श्वसन (साँस संबंधी) और हृदय रोग के मामलों की सँख्या में वृद्धि का महत्वपूर्ण योगदान है।

दिल्ली ऐसे दावों की सँख्या में देश में सबसे आगे रही, जबकि बेंगलुरु और हैदराबाद में भी दावों का अनुपात अधिक पाया गया। द्वितीय श्रेणी के शहरों — जैसे जयपुर, लखनऊ और इंदौर आदि ने भी मामलों में वृद्धि की सूचना दी, जो इस बात का संकेत है कि वायु प्रदूषण का प्रभाव महानगरों से आगे बढ़कर अब छोटे शहरों तक फैल रहा है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि वायु प्रदूषण अब एक पर्यावरणीय संकट से बढ़कर सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति बन गया है। इसमें पाया गया कि प्रदूषण से संबंधित बीमारियों में वृद्धि के कारण उपचार की लागत में भी 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों में एक स्पष्ट मौसमी पैटर्न दिखाई देता है, विशेष रूप से दीवाली के आसपास के समय में। दीवाली के बाद दर्ज किए गए बीमा दावे दीवाली से पहले की तुलना में 14 प्रतिशत अधिक पाए गये, जो इस अवधि में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में तेज़ गिरावट को दर्शाता है।

अक्टूबर के अंत से लेकर दिसंबर की शुरुआत तक, देश के कई हिस्सों में प्रदूषण स्तर “मध्यम” से “गंभीर” श्रेणी में पहुँच जाता है। इसका कारण पराली जलाना, पटाखों का धुआँ और सर्दियों में ठहरी हुई हवा बताया गया है।

सितंबर 2025 में अकेले ही, अस्पताल में भर्ती होने वाले सभी दावों में से 9 प्रतिशत वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण थे — जिनमें साँस के संक्रमण, हृदय संबंधी जटिलताएँ, त्वचा और आँखों की एलर्जी जैसी समस्याएँ शामिल थीं।

पिछले चार वर्षों में प्रदूषण से संबंधित दावों में लगातार वृद्धि हुई है — वर्ष 2022 में दीवाली से पहले 6.4 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2025 में दीवाली के बाद 9 प्रतिशत तक पहुँच गयी, जो स्वास्थ्य पर बढ़ते बोझ की ओर इशारा करती है।

रिपोर्ट में आगे बताया गया कि वायु प्रदूषण केवल फेफड़ों को ही नहीं, बल्कि शरीर के कई अंग-तंत्रों को प्रभावित करता है। आमतौर पर दर्ज किए गये दावों की श्रेणियों में अस्थमा (Asthma), सीओपीडी (COPD), अरिदमिया (Arrhythmia), हाई ब्लड प्रेशर (Hypertension), एक्ज़िमा (Eczema), कंजंक्टिवाइटिस (Conjunctivitis), गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताएँ, और साइनस एलर्जी जैसी बीमारियाँ शामिल थीं।

जैसे-जैसे भारत एक और धुंधभरी सर्दी का सामना कर रहा है, यह रिपोर्ट देश के स्वास्थ्य संकट की गंभीर तस्वीर पेश करती है।
प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों की बढ़ती सँख्या खासकर बच्चों में, यह दर्शाती है कि वायु प्रदूषण से निपटने और संवेदनशील समूहों की सुरक्षा के लिए तत्काल और सशक्त कदम उठाने की आवश्यकता है।