दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिया – रेलवे को ऑटिज़्म के लिए नीतिगत निर्णय लेने का निर्देश !

दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय रेलवे को यह तय करने के लिए समयबद्ध नीतिगत निर्णय लेने का निर्देश दिया है कि क्या ऑटिज़्म (मस्तिष्क के विकास से सम्बंधित एक विकार) को रेलवे यात्रा रियायतों के लिए पात्र दिव्यांगता श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए।

नयी दिल्ली, 15 नवंबर 2025 ! दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय रेलवे को यह तय करने के लिए समयबद्ध नीतिगत निर्णय लेने का निर्देश दिया है कि क्या ऑटिज़्म (मस्तिष्क के विकास से सम्बंधित एक विकार) को रेलवे यात्रा रियायतों के लिए पात्र दिव्यांगता श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए।

यह निर्देश उस समय दिया गया जब अदालत ने मास्टर नक्श (एक बालक ) द्वारा दायर एक याचिका का निपटारा किया। यह याचिका उनके पिता के माध्यम से दाखिल की गयी थी, जिसमें मौजूदा रेलवे रियायत नियमों से ऑटिज़्म को बाहर रखने को चुनौती दी गयी थी। याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अशोक अग्रवाल, कुमार उत्कर्ष, मनोज कुमार और आशना खान ने तर्क दिया कि ऑटिज़्म को शामिल न करना मनमाना, भेदभावपूर्ण और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने मांग की कि ऑटिज़्म को बाहर रखने वाले नियमों को निरस्त घोषित किया जाए और रेलवे रियायत नियमों में इस स्थिति को शामिल करने के लिए संशोधन किए जाएँ।

भारत सरकार और रेलवे की ओर से पैरवी करने वाले CGSC निशांत गौतम, पृथ्वीराज डे, काव्या शुक्ला और श्रीजीता ने जवाब दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय मांगा। हालाँकि, न्यायमूर्ति मिनी पुष्कर्णा ने यह टिप्पणी की कि चूँकि याचिकाकर्ता नीतिगत बदलाव की मांग कर रहा था, इसलिए अंतिम निर्णय रेलवे के अधिकार क्षेत्र में आता है।

उन्होंने निर्देश दिया कि इस रिट याचिका को एक प्रतिनिधित्व (representation) के रूप में माना जाए और रेलवे को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह अपने रियायत ढाँचे में ऑटिज़्म को शामिल किए जाने पर एक स्पष्ट नीतिगत निर्णय ले। अदालत ने आदेश दिया कि यह निर्णय “संभव हो सके तो छह महीने के भीतर” लिया जाए और यह भी कहा कि यदि आवश्यकता हो तो रेलवे याचिकाकर्ता के अधिकृत प्रतिनिधि को सुनवाई के लिए बुला सकता है।

रेलवे को यह भी निर्देश दिया गया कि वह अपना अंतिम निर्णय याचिकाकर्ता को उनके वकील के ईमेल के माध्यम से सूचित करे, जैसा कि आदेश में दर्ज किया गया है। इन निर्देशों के साथ याचिका निस्तारित कर दी गयी।