
लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) में संस्कृत में एक पाठ्यक्रम शुरू !
विभाजन के बाद पहली बार, पाकिस्तान की लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) ने कथित तौर पर शास्त्रीय भाषा संस्कृत में चार-क्रेडिट का एक पाठ्यक्रम शुरू किया है। लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) द्वारा की गई यह पहल तीन महीने की सप्ताहांत कार्यशाला के बाद शुरू की गई, जिसे छात्रों और विद्वानों से जबरदस्त रुचि मिली। इसके अलावा, विश्वविद्यालय हिंदू महाकाव्य महाभारत और भगवद् गीता पर भी पाठ्यक्रम शुरू करने की योजना बना रहा है।
लाहौर (पाकिस्तान), 14 दिसंबर ! विभाजन के बाद पहली बार, पाकिस्तान की लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) ने कथित तौर पर शास्त्रीय भाषा संस्कृत में चार-क्रेडिट का एक पाठ्यक्रम शुरू किया है।
लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) द्वारा की गई यह पहल तीन महीने की सप्ताहांत कार्यशाला के बाद शुरू की गई, जिसे छात्रों और विद्वानों से जबरदस्त रुचि मिली। इसके अलावा, विश्वविद्यालय हिंदू महाकाव्य महाभारत और भगवद् गीता पर भी पाठ्यक्रम शुरू करने की योजना बना रहा है।
यह जानना रोचक होगा कि पाकिस्तान के LUMS विश्वविद्यालय में 1947 के भारत-विभाजन के बाद पहली बार लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) में संस्कृत पढ़ाई जा रही है। क्षेत्रीय समझ, सांस्कृतिक विरासत और प्राचीन ग्रंथों तक पहुँच बनाने के उद्देश्य से, और छात्रों की भारी रुचि को देखते हुए डॉ अली उस्मान कासमी और डॉ शाहिद राशीद के नेतृत्व में यह कार्यक्रम वर्कशॉप से बढ़ कर चार क्रेडिट कोर्स तक जा पहुँचा जो कि शुरू में सिर्फ एक वीकेंड वर्कशॉप था। इस पहल के पीछे डॉ अली उस्मान कासमी और डॉ शाहिद राशीद हैं। दोनों प्रोफेसर मानते हैं कि प्राचीन भाषाओं का अध्ययन सिर्फ पढ़ाई नहीं, बल्कि संस्कृति और समझ का पुल है। उनका कहना है कि संस्कृत पाकिस्तान और भारत की साझा विरासत का हिस्सा है और प्राचीन ग्रंथों तक पहुँच के लिए जरूरी है।
इस पहल का मकसद स्थानीय विद्वानों को तैयार करना है ताकि वे पंजाब यूनिवर्सिटी में मौजूद संस्कृत संग्रह का अध्ययन कर सकें और भविष्य में महाभारत और भगवद गीता जैसे ग्रंथों पर पाठ्यक्रम शुरू हो सके। डॉ अली उस्मान कासमी, जो LUMS के गुरमानी सेंटर के डायरेक्टर हैं, कहते हैं कि हमें उम्मीद है कि यह नई गति देगा। अगले 10-15 सालों में पाकिस्तान में गीता और महाभारत के विद्वान उभर सकते हैं।
जैसा कि ऊपर उल्लेखित है, इस पहल की शुरुआत तीन महीने की वीकेंड वर्कशॉप के रूप में हुई थी, जिसमें छात्र, शोधकर्ता, वकील और अकादमिक सभी भाग ले सकते थे। प्रतिक्रिया इतनी सकारात्मक रही कि इसे पूर्ण विश्वविद्यालय कोर्स में बदल दिया गया। कासमी ने बताया कि हालाँकि भी छात्रों की सँख्या कम है, लेकिन हमें उम्मीद है कि अगले कुछ वर्षों में यह बढ़ेगी। हमारी योजना है कि 2027 की बसंत तक इसे पूरे साल का कोर्स बनाया जा सके।
राजनीतिक संवेदनशीलताओं के बावजूद दोनों विद्वानों का मानना है कि बुद्धिजीवी माहौल बदल रहा है। राशीद कहते हैं कि संस्कृत पूरे क्षेत्र की बाइंडिंग भाषा है। हमें इसे अपनाना चाहिए। यह हमारी भी विरासत है। किसी धर्म विशेष से नहीं जुड़ी। पाणिनी का गाँव इसी क्षेत्र में था और सिंधु घाटी सभ्यता के समय यहाँ बहुत लेखन हुआ। उनका कहना है कि इस पहल का उद्देश्य क्षेत्रीय समझ को बढ़ावा देना और प्राचीन परंपराओं से जुड़ना है। अगर पाकिस्तान में अधिक मुस्लिम संस्कृत सीखें और भारत में अधिक हिंदू और सिख अरबी सीखें, तो यह दक्षिण एशिया के लिए नई और आशाजनक शुरुआत हो सकती है।
कांग्रेस नेता हुसैन दलवई ने पाठ्यक्रम में संस्कृत पढ़ाने की शुरुआत का समर्थन किया। इस सन्दर्भ में दलवई ने संस्कृत को पाठ्यक्रम में शामिल करने की पहल का समर्थन करते हुए कहा कि पाकिस्तान का इतिहास विभाजन के समय से ही भारत से जुड़ा रहा है। मीडिया से बातचीत में हुसैन दलवई ने कहा कि पाकिस्तान का इतिहास विभाजन के समय से ही भारत से जुड़ा हुआ है और इसलिए इस निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान भारत से अलग होकर बना था। इसलिए पाकिस्तान भी भारतीय इतिहास से जुड़ा हुआ है। कुछ भी गलत नहीं है। पाकिस्तान में पढ़ाया जाने वाला इतिहास गलत है और यह अच्छी बात है कि वे इसे बदलना चाहते हैं।”
भावनात्मक रूप से एक ऐसा देश जिसे भारत में पसंद नहीं किया जाता है, में संस्कृत को अपनाया जाता है तो निश्चित तौर पर इस कदम का स्वागत होना चाहिए।
