बिना तनाव के सही शिक्षा देने वाले एक मात्र स्कूल श्री नालंदा गुरुकुल के 25 साल पूरे

सूरत:- अपने बच्चे के साथ स्कूल में नोटबुक, स्नैक्स या वाटरबैग भेजने की जरूरत नहीं, आप बच्चे को ट्यूशन मत भेजिए, आपको घर पर भी पढ़ाना नहीं है। स्कूल की ओर से कोई होमवर्क नहीं दिया जाएगा। स्कूल में बच्चे की कोई परीक्षा नहीं ली जाएगी और प्रतिशत या अंक लिखे हो ऐसा कोई रिजल्ट नहीं दिया जाएगा। …यदि आप इन सभी शर्तों को स्वीकार करते हैं तो हम आपके बच्चे को इस स्कूल में प्रवेश दिला सकते हैं।

श्री नालंदा गुरुकुल विद्यालय, सूरत में प्रवेश के लिए आने वाले अभिभावकों के लिए ये कुछ ऐसी शर्तें हैं जिनका पालन अभिभावकों को अनिवार्य रूप से करना होता। यदि अभिभावक में यह सब स्वीकार करने का साहस है तो ही वह अपने बच्चे को प्रवेश दिलाए। कई माता- पिता ने इसे स्वीकार भी करते हैं और स्कूल में बच्चों को पढ़ने के लिए भेजते भी है।

श्री नालंदा गुरुकुल पिछले 25 वर्षों से सूरत में छात्रों को तनाव मुक्त शिक्षा देने करने का प्रयास कर रहा है। प्रयास इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि बदलती दुनिया में निरन्तर नई- नई चीजें जोड़नी और शामिल करनी पड़ती हैं। जैसे कि 15 साल पहले कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी इतने प्रचलित नहीं थे और व्याप भी नहीं था, लेकिन आज नालंदा गुरुकुल में कंप्यूटर और रोबोटिक्स भी पढ़ाया जाता है। वहीं, बढ़ईगीरी, लोहार, मिट्टी के बर्तनों के साथ छात्र सीखना चाहें तो सीख सकते हैं। यहां पढ़ने वाले बच्चे को इस तरह से तैयार किया जाता है कि वह नौकरी पाने की होड़ में शामिल होने के बजाय रोजगार पाने की क्षमता विकसित कर सके।

– प्रवेश पद्धति प्रवेश के लिए

बच्चे के माता- पिता को स्कूल प्रणाली के अनुसार शिक्षा देने के लिए तत्परता दिखानी होती थी। इसके अलावा और कोई शर्त नहीं है।

– शिक्षा की पद्धति (तरीका)

शिक्षण पद्धति क्षमता उन्मुख और घटक उन्मुख विधि है। बच्चे को उसकी क्षमता के अनुसार पढ़ाया जाता है। यदि वह नहीं समझता है तो शिक्षक व्यक्तिगत रूप से उसे उपचारात्मक शिक्षा देते हैं। शिक्षा के लिए चोक- डस्टर सिस्टम है, लेकिन इसका इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर ही किया जाता है। अधिकतर छात्र अनुभव के माध्यम से सीखते हैं। स्कूल के फर्श से लेकर दीवार और छत तक शिक्षण सहायक सामग्री का काम करते हैं। अधिकांश बच्चे विभिन्न प्रकार की शिक्षण सहायक सामग्री से सीखते हैं।

– इससे क्या हासिल होता है?

इस विधि से शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी कम समय में ही सेल्फ लर्निंग करने लग हैं। उसके बाद हाई स्कूल तक उन्हें अपनी शंकाओं के समाधान के लिए ही शिक्षक की आवश्यकता होती है। जहां तक ​​परिणाम की बात है तो यहां पर परिणाम के बजाय छात्र ने विभिन्न विषयों में क्या सीखा, इसकी सूचना दी जाती है। भाषा, गणित और समाजशास्त्र पर विशेष जोर दिया जाता है। इसके अलावा बच्चे में क्रिएटिविटी, ऑब्जर्वेशन पावर, डिसीजन मेकिंग पावर जैसे गुण कितने विकसित हुए हैं, इसकी भी रिपोर्ट दी जाती है। प्री स्कूल से 12वीं तक चलने वाले स्कूल से कोई विद्यार्थी पढ़ाई छोड़ देता है तो उसे भी उसी हिसाब से रिजल्ट दिया जाता है। इस पद्धति से यह परिणाम हासिल होता है कि कक्षा 10 और 12वीं में औसत स्कूल का रिजल्ट 90 से 100 फीसदी रहता है। व्यक्तिगत छात्रों का परिणाम प्रतिशत 70 से 80 प्रतिशत के बीच है। यहां गुजराती और अंग्रेजी माध्यम की गुजरात माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक बोर्ड की मान्यता है।

अतिरिक्त प्रवृत्ति

यूं तो स्कूल में दी जाने वाली सभी तरह की शिक्षा अतिरिक्त प्रवृत्ति की तरह है, इसके बावजूद यहां छात्र संगीत, नृत्य, नाटक सीखते हैं। वे सूरत शहर में साइकिल यात्रा करते हैं। वे सूरत से 100 किलोमीटर दूर डांग जाते हैं और वहां कैंप करते हैं। रॉक क्लाइम्बिंग और ट्रेकिंग के लिए पावागढ़ जाते हैं। वे खेती से लेकर कई अन्य गतिविधियों में लगे हुए हैं। स्कूल में एक नाइट कैंप फायर आयोजित किया जाता है, जिसमें छात्र रात भर अपनी कृतियां पेश करते हैं। यहां खेलों की बात करे तो हॉकी, जूडो, फुटबॉल, योग, जिम्नास्टिक जैसे खेल बच्चे सीखते हैं। कई बच्चे राज्य स्तर तक प्रतियोगिता में हिस्सा ले चुके हैं।

इस प्रकार पिछले 25 वर्षों में इस स्कूल से स्नातक करने वाले कई छात्र न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी व्यवसाय या नौकरी कर रहे हैं। इन्हीं प्रयासों का एक परिणाम यह भी है कि अब सूरत के कुछ अन्य स्कूल भी इस तरीके को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं।

– स्कूल का इतिहास

स्थापना – 1997-98 – बिना बैग, होमवर्क, ट्यूशन के स्कूल

विद्यालय की स्थापना का वर्ष : वर्ष 1997-98 में प्रो. यशपालजी के बिना तनाव के सीखने के सिद्धांत के अनुसार विद्यालय प्रारंभ किया गया। पहले साल में ही तय हो गया कि बच्चे बिना नोटबुक के आएंगे। स्कूल से स्टेशनरी की आपूर्ति। छोटे बच्चों के लिए 7:30 घंटे और बड़े बच्चों के लिए 9:30 घंटे डे- केयर स्कूल, ऑफिस, घर के कामकाज, ट्यूशन खत्म। एक नियम लागू किया कि स्कूल जाने वाले बच्चे ट्यूशन नहीं कर सकते। घर का काम न दें और स्कूल में स्टेशनरी न लाए। इसके स्थान पर उपचारात्मक (नैदानिक ​​एवं उपचारात्मक कार्य) प्रारंभ हुआ। वर्कशीट पार्टन से शुरू होने वाली विषयगत कक्षाएं थीं। धीरे- धीरे स्कूल में DIET और GCRT पर कई कार्यशालाएँ आयोजित की गईं। शैक्षिक नाटकों के लिए पहली पटकथा लेखन कार्यशाला स्कूल में आयोजित की गई।

वर्ष 2012 में मानक- पाठ्यक्रम को समाप्त कर धीरे- धीरे विषयों, मानकों, पाठ्यक्रम को समाप्त करना। इसके स्थान पर विषय आधारित शिक्षा, ग्रेडलेस कंपोनेंट सिस्टम लागू किया गया। वर्तमान में बच्चों के साथ हो रहे घटनाओं, अनुभवों पर आधारित चर्चा के माध्यम से पढ़ाना शुरू किया। ऐसे कार्यक्रमों को अपनाएं गए जो बच्चे की मूल क्षमता का विकास करें। 2015 से इंजीनियरिंग वर्कशॉप, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल जैसे कोर्स शुरू किए गए हैं और बच्चों को संगीत- नृत्य आदि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके साथ ही ट्रेकिंग, पर्वतारोहण, 70 किमी से 250 किमी की साइकिल यात्रा, सप्ताह में 10 दिन पर्यावरण शिविर आदि का आयोजन साल दर साल किया जाता है। बच्चों को ऋतुओं द्वारा पढ़ाया जाता है। उस विषय पर शिक्षा प्रदान करने का मुख्य उद्देश्य जीवनोन्मुख शिक्षा प्रदान करना है। इस वर्ष स्कूल के 25 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। वार्षिक उत्सव का विषय वामन के तीन कदम हैं।

– स्कूल की सामान्य जानकारी

स्थापना-1997-98

माध्यमिक मान्यता -1998-99

उच्चतर माध्यमिक मान्यता -2002

डे- केयर पूर्णकालिक स्कूल

स्कूल का समय-

कक्षा 1 से 5 के लिए सुबह 9.30 से शाम 4 बजे तक
कक्षा 6 से 12 के लिए प्रातः 8 बजे से 5.30 बजे तक

वोकेशनल कोर्स वर्ष 2015 से

कुल क्षमता-250 छात्र
प्रति कक्षा-15 छात्र

शिक्षकों की संख्या- एक शिक्षण प्रति 15 छात्र
विद्यालय का क्षेत्र-2 बीघा