
सोनिया ने केंद्र सरकार को घेरा – अरावली पर्वत श्रृंखला की परिभाषा में बदलाव अरावली की मौत का फ़रमान !
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बुधवार को अरावली पर्वतमाला की परिभाषा में केंद्र सरकार द्वारा किए गए बदलाव पर कड़ा हमला बोला और इसे अरावली पहाड़ियों के लिए ‘मौत का वारंट’ करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को केंद्र की नई परिभाषा स्वीकार की थी, जिसके अनुसार अरावली श्रेणी में आने वाली वे पहाड़ियाँ जिनकी ऊँचाई 100 मीटर से कम है, अब खनन संबंधी प्रतिबंधों के दायरे में नहीं आएँगी।
नई दिल्ली, 3 दिसंबर 2025 ! कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बुधवार को अरावली पर्वतमाला की परिभाषा में केंद्र सरकार द्वारा किए गए बदलाव पर कड़ा हमला बोला और इसे अरावली पहाड़ियों के लिए ‘मौत का वारंट’ करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को केंद्र की नई परिभाषा स्वीकार की थी, जिसके अनुसार अरावली श्रेणी में आने वाली वे पहाड़ियाँ जिनकी ऊँचाई 100 मीटर से कम है, अब खनन संबंधी प्रतिबंधों के दायरे में नहीं आएँगी।
कांग्रेस ने सोनिया गांधी के एक राष्ट्रीय दैनिक में प्रकाशित लेख का अंश साझा किया, जिसमें उन्होंने कहा, “अरावली पर्वतमाला, जो गुजरात से राजस्थान होते हुए हरियाणा तक जाती है, भारतीय भूगोल और इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है। लेकिन मोदी सरकार ने अब लगभग इसके विनाश पर हस्ताक्षर कर दिए है !”
सोनिया गांधी ने आगे कहा कि मोदी सरकार ने इन पहाड़ियों के लिए लगभग ‘मौत का वारंट’ जारी कर दिया है, जो पहले ही अवैध खनन से बर्बाद हो चुकी हैं। सरकार ने घोषित किया है कि जो भी पहाड़ियाँ 100 मीटर से कम ऊँचाई वाली हैं, वे अब खनन प्रतिबंधों के दायरे में नहीं आएंगी।
उन्होंने कहा,“यह अवैध खननकर्ताओं और माफियाओं को खुला आमंत्रण है कि वे पर्वतमाला के उन 90 प्रतिशत हिस्सों को नष्ट कर दें जो सरकार द्वारा तय ऊँचाई सीमा से नीचे आते हैं। सरकार की नीतियों में पर्यावरण के प्रति गहरी और लगातार उपेक्षा दिखाई देती है।”
इसके अलावा, सोनिया गांधी ने वनों की कटाई और स्थानीय समुदायों को जंगलों से बेदखल किए जाने को भी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की भावना का उल्लंघन बताया। कांग्रेस नेता ने नीति स्तर पर बदलाव की मांग करते हुए केंद्र सरकार से कहा कि वह वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 और वन संरक्षण नियम, 2022 में किए गए संशोधनों को वापस ले।
इससे पहले, 20 नवंबर को पूर्व मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले पर अपना निर्णय सुनाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दी गई अरावली पहाड़ियों और पर्वतमाला की परिभाषा को स्वीकार करते हुए आदेश पारित किया। उच्चतम न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों में सतत खनन (sustainable mining) के लिए दी गई सिफारिशों और अवैध खनन को रोकने हेतु उठाए जाने वाले कदमों को भी मंजूरी दी। तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मंत्रालय को सतत खनन प्रबंधन योजना (MPSM) तैयार करने का निर्देश दिया, जिसमें यह बिंदु शामिल करने के निर्देश दिए गए –
*अरावली परिदृश्य के भीतर खनन के लिए स्वीकार्य उन क्षेत्रों तथा पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील, संरक्षण-महत्वपूर्ण और पुनरुद्धार-प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान करना जहाँ पर या तो खनन पर सख्ती से प्रतिबंध होगा या फ़िर केवल असाधारण और वैज्ञानिक रूप से उचित परिस्थितियों में ही अनुमति दी जाएगी।
*इसके अतिरिक्त संचयी पर्यावरणीय प्रभावों और क्षेत्र की पारिस्थितिकीय वहन क्षमता (ecological carrying capacity) का संपूर्ण विश्लेषण शामिल करना और खनन के बाद पुनरुद्धार और पुनर्वास उपायों को विस्तृत रूप से शामिल करना।”
आदेश के अनुसार, MPSM तैयार होने तक कोई नई खनन लीज जारी नहीं की जाएगी।
