
जस्टिस वर्मा की महाभियोग से बचने की सम्भावना सुप्रीम कोर्ट ने समाप्त की !
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कैश कांड में उन पर महाभियोग को रोकने की प्रार्थना की थी। यह याचिका जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय जाँच कमेटी की रिपोर्ट तथा तत्कालीन CJI के द्वारा उन्हें पद से हटाने की सिफारिशों के विरूद्ध दायर की थी। यह सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने लगभा एक सप्ताह पूर्व ही पूरी कर ली थी और निर्णय सुरक्षित रख लिया था जो आज सुनाया गया।
नयी दिल्ली, 7 जुलाई 2025 ! सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कैश कांड में उन पर महाभियोग को रोकने की प्रार्थना की थी। यह याचिका जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय जाँच कमेटी की रिपोर्ट तथा तत्कालीन CJI के द्वारा उन्हें पद से हटाने की सिफारिशों के विरूद्ध दायर की थी।
इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए जी मसीह की पीठ ने सुनवाई की थी। बेंच ने कहा जस्टिस वर्मा का आचरण विश्वास पैदा नहीं करता इसलिए उनकी याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।
18 जुलाई को जस्टिस वर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। इसमें उनका तर्क था कि उनके घर के बाहरी हिस्से में जले हुए नोटों का अंबार प्राप्त होने से यह साबित नहीं होता कि वे भी इसमें शामिल थे। उन्होंने सर्वोच्च न्यायलय से अनुरोध किया था कि पहले आंतरिक जाँच समिति से जाँच कराई जाए कि नगदी किसकी है और वहाँ कैसे मिली, हालाँकि आज सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को पूरी तरह से खारिज कर दिया।
14 मार्च 2025 को उनके घर में आग लग जाने के कारण घर में आये फायर ब्रिगेड के कर्मचारी जब आग बुझा रहे थे तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि घर के एक कमरे में बोरियों में 500 के नोट भरे हुए थे जो कि जल गये थे।
ज्ञातव्य है कि इन हाउस जाँच में जस्टिस वर्मा को दोषी करार दिये जाने के बाद उनके खिलाफ संसद के दोनों सदनों में महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया। जस्टिस यशवंत वर्मा के विरुद्ध संसद के दोनों ही सदनों में महाभियोग का नोटिस दिया जा चुका है। लोकसभा में 152 तथा राज्यसभा में 54 सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये थे, हालाँकि अभी किसी भी सदन ने इस नोटिस पर अपनी स्वीकृति नहीं दी है।
अब जस्टिस वर्मा के सामने मुख्यतः दो विकल्प शेष रह गये हैं – पहला, अगर वह इस्तीफा दे देते हैं तो वह महाभियोग की कार्यवाही से बच जायेंगे तथा इसके साथ ही उन्हें रिटायर होने पर जज की पेंशन भी मिलती रहेगी , दूसरा, लेकिन यदि वे त्यागपत्र नहीं देते हैं और उन्हें महाभियोग के जरिये पदच्युत किया जाता है तो उन्हें पेंशन सहित किसी भी प्रकार का लाभ नहीं मिल पाएगा। हालाँकि वे त्यागपत्र देने से पहले ही इंकार कर चुके हैं।
जस्टिस यशवंत वर्मा दिल्ली उच्च न्यायलय के न्यायाधीश थे जिन्हें इस प्रकरण के बाद कॉलेजियम ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया था।
इस निर्णय से अब उनकी महाभियोग से बचने की सम्भावना सुप्रीम कोर्ट ने समाप्त कर दीं है।
जस्टिस यशवंत वर्मा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल ने पैरवी की। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई तो लगभा एक सप्ताह पूर्व ही पूरी कर ली थी और निर्णय सुरक्षित रख लिया था जिसे आज सुनाया गया।