
लेह में आंदोलन हिंसक हुआ…. सोनम वांगचुक का 15 दिन का उपवास रुका !
लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की माँग को लेकर लगभग 15 दिन से चल रहा आंदोलन मंगलवार को हिंसा और टकराव में बदल गया। इसी बीच प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने 15 दिन बाद अपना उपवास तोड़ते हुए युवाओं से शांति बनाए रखने की अपील की।
लेह (लद्दाख), 24 सितंबर 2025 ! लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की माँग को लेकर लगभग 15 दिन से चल रहा आंदोलन मंगलवार को हिंसा और टकराव में बदल गया। इसी बीच प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने 15 दिन बाद अपना उपवास तोड़ते हुए युवाओं से शांति बनाए रखने की अपील की। उन्होंने साफ कहा कि किसी भी प्रकार की आगजनी या झड़प से आंदोलन की नैतिकता कमजोर होगी।
इस भूख हड़ताल से पहले, लद्दाख के युवाओं की एक इकाई लद्दाख एपेक्स बॉडी (LAB , Youth Wing) ने एक 35-दिन का अनशन शुरू किया था, जिसमें 15 लोग शामिल थे, और उनमें से 2 को अस्पताल ले जाना पड़ा। हिंसा की बढ़ती घटनाओं के चलते वांगचुक ने कहा कि उनका शांतिपूर्ण संदेश “असर न कर पाने” के कारण हड़ताल को समाप्त करना पड़ा। उन्होंने यह अनशन आज, 24 सितंबर 2025 को समाप्त किया।
वांगचुक अपने समर्थकों से कहा कि मैं युवाओं से अपील करता हूँ कि आगजनी और झड़पों को बंद करें। हम अपना उपवास खत्म कर रहे हैं और प्रशासन से भी आग्रह है कि आँसू गैस के गोली चलाना बंद करें। कोई भी भूख हड़ताल तब तक सफल नहीं होती जब तक किसी की जान संघर्ष में जाती है।
बता दें कि बुधवार को लेह में बंद और विरोध प्रदर्शन के दौरान हालत बिगड़ गये। अशांत प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी कार्यालय में आग लगा दी। इसके अलावा कई वाहनों को भी आग के हवाले कर दिया। पुलिस ने बताया कि कुछ युवाओं के द्वारा पथराव करने और सुरक्षा बलों पर हमला करने के बाद भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आँसू गैस और लाठी चार्ज का इस्तेमाल करना पड़ा। मीडिया सूत्रों के अनुसार इस हिंसक प्रदर्शन में 4 लोगों की मृत्यु और 70 लोग घायल बताये जा रहे हैं। हालात को सँभालने के लिए अतिरिक्त बल तैनात किए गये हैं।प्रशासन ने सार्वजानिक मीटिंगों और सामूहिक क़दमों को प्रतिबंधित करने के लिए BNSS की धारा 163 लगाने का आदेश जारी किया है।
यह आंदोलन लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और राज्य का दर्जा देने की माँग को लेकर जारी है। लद्दाख एपेक्स बॉडी (LAB ) और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (KDA) कई दौर की बातचीत पहले ही कर चुके हैं लेकिन कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया। गृह मंत्रालय ने अब अगली बैठक 6 अक्टूबर को तय की है। LAB और KDA का कहना है कि वे बिना समाधान के भूख हड़ताल खत्म नहीं करेंगे। एल.ए.बी. के सह अध्यक्ष चेयरिंग दोरजे ने हाल ही में कहा था हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण है लेकिन देरी से लोग अधीर हो रहे हैं। हमने सरकार से कहा है कि समझौते तक हम उपवास खत्म नहीं करेंगे।
इस बीच एल.ए.बी. के कई नेताओं ने केंद्र सरकार पर तारीख थोपने का आरोप भी लगाया। उनका कहना है कि वार्ता का समय तय करने में दोनों पक्षों की सहमति होनी चाहिए थी। उन्होंने उपवास के लिए कठिन परिस्थितियों का जिक्र किया है क्योंकि ऊँचाई वाले स्थान में बिना भोजन के रहना वही बेहद चुनौती पूर्ण है सोनम वांगचुक ने बार-बार दोहराया है कि आंदोलन का रास्ता केवल शांतिपूर्ण होना चाहिए। उन्होंने कहा हम चाहते हैं कि हमारी समस्याएं भारत की गरिमा बनाए रखते हुएसु लझे। युवाओं को हिंसा से दूर रहना ही होगा।
ज्ञातव्य है कि लद्दाख में राज्य दर्जा (Statehood) और संविधान की छठी अनुसूची (Sixth Schedule) में शामिल करने की माँग को लेकर आंदोलन पिछले कुछ वर्षों से लगातार चल रहा है। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों (Union Territories) – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बाँट दिया गया था।
लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश तो मिला, लेकिन उसके पास विधानसभा नहीं है, केवल लेफ्टिनेंट गवर्नर की प्रशासकीय व्यवस्था है। इससे स्थानीय लोगों में असंतोष बढ़ा, क्योंकि उन्हें लगा कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व और भूमि व नौकरियों पर सुरक्षा कम हो गयी है।
2019 के तुरंत बाद से ही स्थानीय सामाजिक व धार्मिक संगठनों ने इस पर आवाज उठानी शुरू कर दी थी। 2020–21 में यह आंदोलन और संगठित हुआ, जब लद्दाख एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) जैसे संगठन बने। तब से ये संगठन मिलकर राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची में शामिल करने, लोकसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व और सार्वजनिक सेवा आयोग जैसी सँस्थाओं की स्थापना जैसी माँगें कर रहे हैं। आंदोलनकारियों की यह भी माँग है कि उन्हें लेह और कारगिल , दोनों जगह से लोकसभा में प्रतिनिधित्व मिले।
फरवरी 2024 से 2025 की शुरुआत तक लेह और कारगिल दोनों जगहों पर बड़े स्तर के प्रदर्शन हुए। केंद्र सरकार और आंदोलनकारी संगठनों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई ठोस समझौता नहीं हो पाया है।