दुनिया का सबसे बुजुर्ग मैराथन धावक जीवन की दौड़ से बाहर हुआ !

114 वर्ष के वयोवृद्ध मैराथन धावक फौजा सिंह का सोमवार को पंजाब के जालंधर में एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। अपने पैतृक गाँव , जहाँ उन्होंने जन्म लिया था,  में टहलते हुए सड़क पार करते समय एक अज्ञात वाहन ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया । उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहाँ  उन्होंने दम तोड़ दिया।

भारत में जन्मे और ब्रिटिश नागरिक फौजा सिंह ने मुंबई से लेकर कनाडा और लंदन तक मैराथन दौड़कर अपनी एक अनूठी पहचान बनायी।

“फौजा सिंह का जन्म 1 अप्रैल, 1911 को पंजाब के जालंधर ज़िले के ब्यास गाँव में हुआ था। उनका शुरुआती जीवन आसान नहीं था। बचपन में एकदम दुबले पतले दिखने वाले फौजा को बाकी के लड़के डंडा कहकर बुलाते थे। कमजोरी कारण पैरों में कुछ दिक्कत थी इसलिए 5 साल की उम्र तक उन्हें चलने में कुछ परेशानी होती थी। बाद में बड़ी मुश्किल से जब चल भी पाये तो 1 किलोमीटर से ज्यादा चलना उनके लिए मुमकिन नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे पिता के साथ खेतों में काम करते हुए शरीर को मजबूत किया, तब जाकर पैरों में भी जान आ गयी ।

समय गुजरता गया और देश आज़ाद हो गया। फ़ौजा सिंह का जीवन भी आगे बढ़ा और उन्होंने ज्ञानकौर से विवाह कर लिया। उनके तीन बेटे और तीन बेटियाँ हुईं। फ़ौजा सिंह खेतों में काम करते थे और पत्नी घर सँभालती थीं। धीरे-धीरे बच्चे बड़े हुए और नौकरी की तलाश में कनाडा और लंदन चले गये। फ़ौजा सिंह का सबसे छोटा बेटा कुलदीप जालंधर में ही रहा। वह अकेला ही अपने पिता और माँ की देखभाल करता था।

वर्ष 1992 में फ़ौजा सिंह की पत्नी ज्ञानकौर का भी निधन हो गया। तत्पश्चात 80 वर्ष की आयु पार कर चुके फ़ौजा सिंह को लगा कि अब जीवन के कुछ ही वर्ष शेष हैं और वे अपने बेटे कुलदीप के सहारे शेष जीवन गुजार लेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। 1994 में एक दुर्घटना में कुलदीप की मृत्यु हो गयी और उसके बाद, भारत में फ़ौजा सिंह का कोई सहारा नहीं बचा। मात्र दो वर्षों में, उनका पूरा जीवन उथल-पुथल हो गया। पहले उनकी पत्नी और फिर उनके बेटे की मृत्यु ने उन्हें पूरी तरह से तोड़ दिया। वे भारत में अकेले रह गये।

इसके बाद, उनका बेटा सुखविंदर उन्हें अपने साथ लंदन ले गया । वहाँ वे सुखविंदर और उसके परिवार के साथ रहने लगे। वे वहाँ रह तो रहे थे किन्तु विदेशी धरती पर वहाँ की जीवनशैली से न तो सहज ही थे, और न ही उन्हें अंग्रेजी भाषा आती थी। वे केवल पंजाबी ही जानते थे। घर पर, वे केवल टेलीविजन के सहारे ही अपना समय बिताते थे। एक दिन उन्होंने टीवी पर समाचार देखा कि लंदन में एक मैराथन आयोजित होने जा रही है और टीवी एंकर लोगों को इसमें भाग लेने के लिए प्रोत्साहित कर रहा था।

टीवी पर मैराथन की खबरें देखकर फौजा को अपना  बचपन याद आ गया। खेतों में दौड़ने से उनके पैर मज़बूत हो गये थे। लेकिन अब उनका शरीर और उम्र उनका साथ नहीं दे रहे थे। फिर भी, दृढ़ निश्चय के साथ, फौजा सिंह ने मैराथन में भाग लेने का फैसला किया। उन्होंने जॉगिंग से शुरुआत की, लेकिन शुरुआत में उन्हें यह भी नहीं पता था कि मैराथन असल में क्या होती है।

आस-पास पूछताछ करने पर उन्हें हरविंदर सिंह के बारे में पता चला, जो एक मैराथन धावक और प्रशिक्षक थे। फौजा सिंह ने हरविंदर को मैराथन दौड़ने की अपनी इच्छा के बारे में बताया। लेकिन जब हरविंदर को पता चला कि एक 89 वर्षीय व्यक्ति उनकी ऐसी इच्छा पूरी करना चाहता है, तो पहले तो वह चौंक गये। हालाँकि, बाद में उन्होंने फौजा की मज़बूत इच्छाशक्तिको देख कर उनकी मदद करने का निर्णय किया।

सन 2000 में 89 साल की उम्र में लंदन में “लाइफ” द्वारा आयोजित अपनी पहली मैराथन दौड़ में भाग लेकर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैराथन दौड़ना शुरू किया । यह दौड़ उन्होंने 6 घंटे 54 मिनट में पूरी की। इतनी उम्र में मैराथन दौड़ने के उनके फ़ैसले ने कई लोगों को अचंभित कर दिया। इस दौड़ के बाद जब उनसे पूछा गया कि इस उम्र में आप कैसे दौड पाये ? तो उन्होंने मुस्कराते हुए जवाब दिया कि बीस मील तक तो कोई परेशानी नहीं हुई , लेकिन उसके बाद आखिरी 6 मील मैं अपने ईश्वर से बातें करता रहा…

वर्ष 2004 में, फौजा सिंह ने 93 वर्ष की आयु में लंदन मैराथन भी पूरी की। 2011 में, 100 वर्ष की आयु में, उन्होंने टोरंटो मैराथन पूरी की और 100 से अधिक आयु वर्ग में एक रिकॉर्ड बनाया। वे दुनिया के सबसे बुजुर्ग मैराथन धावक थे । सन 2000 से 2013 के मध्य उन्होंने 9 मैराथन दौड़ों में भाग लिया, उसके बाद उन्होंने सन्यास ले लिया।

वे आज भी विश्व के सबसे अधिक उम्र के मैराथन धावक के रूप में जाने जाते हैं, हालाँकि उनका नाम गिनीज़ बुक में दर्ज नहीं हो सका क्योंकि उनके पास जन्म का प्रमाण-पत्र नहीं था ! 2000 के दशक में  उन्हें ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त हुई ।

दौड़ के प्रति अपने जुनून के कारण फ़ौजा सिंह को ‘टर्बन्ड टॉरनेडो’ (पगड़ी पहने तूफ़ान) के नाम से जाना जाता था। 7 जुलाई 2011 को प्रकाशित  खुशवंत सिंह द्वारा रचित उनकी जीवनी का भी यही नाम रखा गया।

सरदार फौजा सिंह ने 2012 में 101 वर्ष की उम्र में लंदन ओलंपिक में मशाल वाहक के रूप में भाग लिया था।

पंजाब के राज्यपाल व चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाब चंद कटारिया ने फौजा सिंह के निधन पर शोक व्यक्त किया है। राज्यपाल ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर अपनी पोस्ट में लिखा: “मैराथन धावक और दृढ़ता के प्रतीक, सरदार फौजा सिंह का निधन हो गया है। उन्होंने मेरे साथ ‘नशा-मुक्त, रंगीन पंजाब मार्च’ में उत्साहपूर्वक भाग लिया था। उनकी विरासत नशा-मुक्त पंजाब के लिए प्रेरणा बनी रहेगी।”

 

 

 

 

 

 

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