राजस्थान क्षत्रिय समाज भवन, हरिधाम सोसाइटी, 120 फीट आशापुरी बमरोली रोड, सूरत में आयोजित शिव महापुराण कथा के आयोजन में दूसरे दिन की कथा में मंगलवार को पंडित संदीप महाराज ने बताया कि भगवान अपने शिव की मूर्ति एवं शिवलिंग के स्वरूप का परिचय दिया। पाठवाक्षर मंत्र अर्थात ॐ नमः शिवाय इस मंत्र की उत्पत्ति के विषय में बताया। अ उ और म् बनकर ॐ कहलाता है, जो प्रणव मंत्र है। प्रणव मंत्र से ही सारी सृष्टि का सर्जन होता है। शिव के पांच मुख से पांच अक्षर निकले, पहले मुख से न दूसरे मुख से म तीसरे से शि चौथे से वा पांचवे मुख से य अक्षर निकला, यह पंचाक्षर मंत्र कहलाते हैं। ॐ अर्थात प्रणव मंत्र से ही गायत्री एवं वेद तथा सभी पुराणों की रचना मानी गई है। इसके उपरांत पार्थिव शिवलिंग के विषय में विस्तरित वर्णन किया। सतयुग में पारे का शिवलिंग का विशेष महत्व है, द्वापर युग मे पत्थर आदि से बने शिवलिंग का महत्व है और कलयुग में मिट्टी से बने शिवलिंग अर्थात पार्थिव शिवलिंग की पूजा का बड़ा महत्व है।
त्रिपुण्ड धारण विधि का वर्णन किया कि त्रिपुण्ड में तीन रेखा है, पहली रेखा ब्रह्मा, दूसरी रेखा में विष्णु एवं तीसरी रेखा में स्वयं शिव विराजमान करते हैं। बिल्व पत्र का भी वर्णन किया कि जो व्यक्ति एक भी बिल्व पत्र शिवजी को चढ़ा दे तो उसे वाजपेय यज्ञ, सोम यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है।